कर्मनाशा की हार पार्ट- 3 | द सहाफत न्यूज़ |

हम लड़ेंगे अपने बेटियों और उसके शिक्षा के लिए


स्कूल जाती छात्राएं 

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी 50 से 60 फीसदी लड़के लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते है. इसकी मुख्य वजह आर्थिक तंगी नहीं बल्कि कॉलेजों का दूर होना है. जी हाँ कर्मनाशा और उससे जुड़े करीब 30 से 40 गाँव येसे है जहाँ के बच्चे 10वी. और 12वी. तो किसी तरफ पास कर लेते है लेकिन जब बात उच्च शिक्षा की आती है तो उनके और उनके माता-पिता के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा हो जाता है. क्योंकि कर्मनाशा UP बिहार के बॉडर पर बसा है. और बिहार के कैमूर जिले की बात करें तो नजदीक में 2 या 3 ही सरकारी कॉलेज नजर में आते है वो भी कर्मनाशा से 35KM (भभुआ) और 70KM (सासाराम) की दुरी पर स्थित है. अगर बात करे इन कॉलेजों की तो इनमे आर्ट और साइंस के आलावा कोई अन्य सब्जेक्ट नहीं मिलता. जिसकी वजह से बच्चों को काफी परेशानी होती है. तो बच्चे क्या करे? मज़बूरी है और इसी मज़बूरी की वजह से बिहार के बच्चे UP का रुख करते है.
कर्मनाशा से UP का चंदौली जिला सटा हुआ है. यहाँ का हालत भी कर्मनाशा क्षेत्र के लड़के और लड़कियों के लिए बिहार से कुछ अलग नजर नहीं आता क्योंकि यहाँ भी सरकारी डिग्री कॉलेज 20 से 35 KM की दुरी पर है. लड़कों की बात करे तो वो बाहर जाकर भी पढ़ लेते है माता पिता भी लड़का होने की वजह से बेफिक्र होकर जाने देते है लेकिन उसी जगह पर लड़की को बेवसी का घुट पीना पड़ता है. आगे पढ़ कर कलेक्टर और डॉक्टर बनाने के सपने को हमेशा के लिए तोड़कर घर के काम-काज में लग जाती है. कुछ लड़कियां हिम्मत कर के UP या अन्य राज्यों में पढने के लिए जाती है तो उन्हें छात्रवृति और अन्य सरकारी छूटों से वंचित होना पड़ता है. आपको बता दे कि (Annual Status of Education Report) की रिपोर्ट के अनुसार 18 से 20 साल की आयु वर्ग की लड़कियों में 13.5 प्रतिशत लड़कियों का नामांकन ऊपर की कक्षाओं में नहीं हो पाता है। कई लड़कियों का नामांकन तो हो जाता है लेकिन उनकी उपस्थिति का रिकॉर्ड काफी खराब रहता है।
अब बात करते है कर्मनाशा कि तो कर्मनाशा में दो प्राइवेट स्कूल है जहाँ 12वी. तक की पढाई होती है. इन दोनों स्कूलों का मैं शुक्रिया अदा करता हूँ जिनकी वजह से कई युवाओं को नौकरियां तो वहीँ दुरी की हतास में अपने पढाई को छोड़ कर घर बैठी लड़कियों को डिग्रियाँ मिल गई. ये स्कूलें UP के बनारस में स्थित महात्मा गाँधी काशी विद्द्यापीठ बनारस से अटैच किसी कॉलेज से सभी बच्चों का स्नातक का फार्म भरवाते है जिससे बच्चों को सिर्फ परीक्षा से मतलब होता है.
भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि "शिक्षा अधिकारों को प्राप्त करने का प्रथम साधन होता है और इसकी सहायता से आम लोग प्रशिक्षित होकर लोकतंत्र में 'नागरिक' बनते हैं। अमेरिका के महान शिक्षाविद् होराक मैन ने भी कहा था कि "शिक्षा नागरिकों का एकमात्र राजनीतिक साधन है, जिसकी नांव पर सवार होकर लोकतंत्र की नदी में उतरा जा सकता है। शिक्षा के बिना यह नाव कहीं भी डूब सकती है।"
इन शिक्षाविदों के कथन से साफ पता चलता है कि लोकतंत्र में शिक्षा का अपना एक महत्व है। हालांकि लोकतंत्र के महान पर्व यानी कि चुनावों में कभी भी यह प्रमुख मुद्दा नहीं बन पाता है। आज भी देश के प्रमुख राजनीतिक दल जाति, धर्म, मंदिर, सेना और पाकिस्तान पर राजनीति करते हैं। इनकी चुनावी सभाओं में इन सभी मुद्दों के अलावा अधिक से अधिक बेरोजगारी और विकास का मुद्दा ही शामिल हो पाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के मुद्दे अभी भी राजनीतिक दलों के लिए कुछ खास मायने नहीं रखते।
मैं ये बात इस लिए उठा रहा हूँ क्योंकि ये सारे मुद्दे हमसे जुड़े हुए है हमारे घर, परिवार और समाज से जुड़े हुए है क्या आपलोग नहीं चाहते कि नजदीक में कोई सरकारी डिग्री कॉलेज हो जहाँ हमारे घर की बेटियां बिना कोई रोक-टोक के पढ़ने जाये. जिससे हमारा लोकतंत्र और भी मजबूत हो. वो जो चाहे वो पढ़े और अपने सपनों को पूरा करे.

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