कर्मनाशा की हार पार्ट- 2 | द सहाफत न्यूज़ |

आम जन का हक़ छीन कर अपना घर भर रहे है :वार्ड सदस्य 


सरकारी चापाकल का निजीकरण 

एक समय था जब हमलोग बचपन में एक खेल खेला करते थे. “घघ्घो रानी कितना पानी? इतना पानी, नहीं इतना” | उस समय बिहार में पानी (वर्षा) भी खूब हुआ करता था. या यूं कहे की बरसात पर ही किसान आश्रित थे . आज भी होता है लेकिन इस बार बिहार में जिस प्रकार से सुखा का प्रकोप देखने को मिला है वो पहले कभी नहीं हुआ. पहले गाँव में कुओं और तालाबों की कोई कमी नहीं हुआ करती थी तो वहीँ सरकारी चापाकल भी जगह-जगह पर लगे हुए थे. लेकिन वर्तमान समय की बात करें तो कुओं और तालाबों को पाट कर उसपर घर और अन्य कम्पनियाँ खोली जा रही है तो वहीँ सरकारी चापाकल का अपने ओहदे और रुतबे से निजीकरण किया जा रहा है.
कहते है कि जब रहनुमा ही आम आदमी के निवाले पर डाका डालने लगे तो उस समाज का कभी भला नहीं हो सकता. ठीक इसी तरह की कहावत को चरितार्थ कर रहा है कैमूर जिले का खजूर पंचायत में वार्ड नंबर 7. जहाँ पूर्व वार्ड सदस्य आम जन की प्यास बुझाने के लिए आवंटित चापाकल में निजी मोटर लगाकर और उसका अपने घर में कनेक्सन कर सरकारी चापाकल का निजीकरण कर लिया है. इस बात की जानकारी कर्मनाशा के सभी लोगों को है लेकिन वे लोग अपनी-अपनी रोटियां सेकने में लगे हुए है किसी को यहाँ पर आने वाले लोगों के बारे में कोई फिक्र नहीं है. इस चापाकल की बात करे तो सिर्फ नाम का चापाकल (हैण्डपम्प) है लेकिन इसका हैण्ड निकालकर सोन पापड़ी खा लिया गया है. जिससे की इसका पानी कोई बाहरी व्यक्ति न ले सके और चापाकल का पानी पूर्व वार्ड सदस्य जी के घर में हाईटेक तरीके से घर के अन्दर धड़ल्ले से दिन और रात जाता रहे.
बाजार में आये हुए लोगों की बात करे तो उन्हें प्यास लगने पर मिठाई की दुकान पर ना चाहते हुए भी अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है. लेकिन इससे कर्मनाशा वासियों से क्या मतलब उनके घर में तो हैण्डपम्प है जब चाहे पानी निकाल ले और जब चाहे उसे पी ले. आम लोगों के प्यास की किसको पड़ी है.

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