कर्मनाशा की हार पार्ट -1 | द सहाफत न्यूज़ |

कर्मनाशा कि हार



अगर आपको पिछले 5 सालों में केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई योजना “स्वच्छ भारत मिशन” की उपलब्धि को करीब से देखना है तो आपको एक बार बिहार राज्य के कैमूर जिले में स्थित कर्मनाशा बाज़ार में जरुर आना चाहिए. मैं ऐसा इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि यहाँ हर घर में एक नेता मिलेंगे जो बड़ी-बड़ी बाते तो करेंगे लेकिन जब जमीन पर आम लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से काम कराने की बात होगी तो वे उनकी चाटुकारिता में लग जायेंगे और तो और कुत्ता जिस प्रकार से रोटी के लिए अपने मालिक के आगे पीछे धूमता है ये लोग उसी प्रकार से अपनी वफ़ादारी दिखाते है.
अब बात करेंगे “स्वच्छ भारत मिशन” की उपलब्धि के बारे में तो जैसा की आपको पता होगा की स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत सिर्फ एक दो नहीं बल्कि 6 योजनाये आती है जिसमें घर-घर में शौचालय, जनसँख्या के हिसाब से सार्वजानिक शौचालय, मूत्राशय, स्नानघर, पीने के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था, नाली की व्यवस्था, कूड़ेदान की व्यवस्था और एक कर्मचारी जो समय-समय पर स्वच्छता के बारे में सभी को अवगत कराये एवं वहा पर हो रहे प्रावधानों को जिला में अवगत कराये.

मैं कर्मनाशा के ही लोगों से पूछना चाहता हूँ क्या इनमें से एक भी योजना यहाँ पर पूर्णरूप से काम कर रहा है अगर नहीं हो रहा है तो इसमें किसकी गलती है इसके लिए कौन जिम्मेदार है? मैं यहाँ के लोगों को चाटुकार क्यों कहता हूँ? इस बारे में मैं आप को बताता हूँ क्योंकि आज से 4 साल पहले जब सांसद अश्वनी कुमार चौबे जो कि वर्तमान सांसद भी है कर्मनाशा आयें थे तो मैं कर्मनाशा के करीब 15 मुद्दों को लेकर उनके पास गया था तब मुझे पता चला की कर्मनाशा में विकास नहीं होने का कारण विधायक या सांसद नहीं बल्कि यहीं के लोग है.

उनमें से 6 योजना स्वच्छ भारत मिशन से ही जुड़ा हुआ था जो कि मेरे द्वारा पूछे गए सवाल के 4 साल बाद भी बना हुआ है लेकिन यह समस्या 4 या 5 सालों की नहीं है बल्कि यह समस्या यहाँ 15 सालों से देख रहा हूँ.
कुछ सवाल है जो आज भी ज्यों का त्यों दीखता है.

• वर्तमान समय की बात करे तो यहाँ नाली तो बन गई है लेकिन उसके पानी की निकासी का कोई प्रावधान नहीं दिखता अगर आज ही वर्षा हो जाये तो घर का पानी जिस नाली में जा रहा है उसी नाली का पानी घर में जाने लगेगा.

• केंद्र सरकार कहती है कि 99.5 % देश स्वच्छ हो गया है लेकिन कर्मनाशा में आने के बाद आपको एसा महशुश नहीं लगेगा क्योंकि यहाँ पर एक भी सार्वजानिक शौचालय नहीं है जिससे यहाँ पर बाज़ार करने आये और जिनकी दुकान है वे लोग शौच या पेशाब कर सके. आज भी वे लोग सड़को के किनारे या खेतों में जाकर शौच या पेशाब करते है तो आप सोच सकते है कि यहाँ आने वाली महिलाओं का क्या हाल होता होगा.

• अगर कूड़ेदान की बात करें तो आपको निचे दिए हुए तस्वीर से साफ मालूम हो गया होगा की यहाँ के लोग कूड़े को कहाँ फेकते है. यहाँ एक भी कूड़ेदान नहीं है जिससे की घर से निकले कूड़े को फेका जा सके. यहाँ के लोगों को सुखा और गिला कचरें के बारे में भी जानकारी नहीं है. जिससे की वे कचरों को अलग-अलग कर के उसका उपयोग कर सके.

• पानी के बारे में आपको पूर्णरूप से कल जानकारी देंगे बस इतना कह सकते है कि यहाँ पर एक भी सार्वजानिक चापाकल ( हैण्डपम्प ) नहीं है जिससे की इतनी जलती धूप में अपनी प्यास बुझा सके.

इससे यह मालूम होता है कि शिक्षित क्षेत्रों में जब सरकार की योजनाओं का वितरण सहीं प्रकार से नहीं हो पाता तो सोचिये की उन क्षेत्रों में क्या होता होगा जहाँ आदिवासी, अशिक्षित व् पिछड़ा बहुल इलाका होता है. इसे देखने के बात तो मुझे सरकार द्वारा जारी की गई स्वच्छ भारत मिशन की रिपोर्ट की पूरा भारत 99.5 % स्वच्छ हो गया है झूठा मालूम होता है. अगर आपको ये बात गलत लगती है तो जरुर सोचियेगा.


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