कर्मनाशा की हार पार्ट – 5 | द सहाफत न्यूज़ |

कर्मनाशा का 20 साल पहले ही सरकारी अस्पताल चोरी : ग्रामवासी अंजान 


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भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाल किले से स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की स्कीमों की घोषणा करते है तो वहीँ बिहार के सुशासन बाबू सरकारी अस्पतालों को बिहार की उपलब्धि बताने में भी संकोच नहीं करते. लेकिन जब मुजफ्फरपुर जैसी घटना सामने आती है तो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाई गई स्कीमों की पोल खुलती नजर आती है. जबकि यह वाक्या मुजफ्फरपुर जैसे बड़े जिले में हुआ जहाँ पर बड़े-बड़े सरकारी हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज उपलब्ध है. फिर भी वहां पर चमकी बुखार जैसी बीमारी से 200 से अधिक बच्चों की मौत को गई और न जाने कितने बच्चे इस बीमारी से जूझ रहे है. तो सोचिये अगर यह स्थिति उन जिलों में होती जहाँ नाम का सरकारी हॉस्पिटल है और काम चवन्नी का भी नहीं अथार्थ अस्पताल में न ही शुद्ध से डॉक्टर है और न ही शुद्ध से दवा उपलब्ध हो पा रही है. डॉक्टरों की कमी की वजह से हालत तो यह है कि एक डॉक्टर 10-10 बीमारियों का इलाज कर रहा है.
आपलोगों को लग रहा होगा कि ये रोज-रोज “#कर्मनाशा की हार” में क्या अनाब-सनाब लिखता है इसे सारी समस्या कर्मनाशा के अन्दर ही क्यों दिखता है. लेकिन खुदा ना खास्ता अगर मुजफ्फरपुर जैसी घटना कैमूर जिले में हो जाये तो हमलोग क्या करेंगे? कहाँ जायेंगे? और किससे गुहार लगायेंगे. क्या अपने क्षेत्र के सांसद अश्वनी कुमार चौबे जी से कहेंगे जो केंद्र में राजकीय स्वास्थ्य मंत्री है. उनसे क्या कहेंगे? जो खुद बक्सर में आये हुए सरकारी हॉस्पिटल को भागलपुर में ले गए उन्हें यह भी ख्याल नहीं आया की जिस क्षेत्र के लोग उन्हें चुन कर केंद्र में पहुंचाए वो लोग बीमार पड़ने पर कहाँ जायेंगे. और क्या कहे इनकी मुजफ्फरपुर की शर्मनाक हरकत भी किसी से छुपी नहीं है.
कैमूर में सरकारी अस्पतालों की स्थिति
कहने को तो कैमूर जिले में कुल 12 से 15 सरकारी अस्पताल है लेकिन डॉक्टरों की कमी की वजह से एक डॉक्टर 10-10 बीमारियों का विशेषज्ञ बना बैठा है वो भी क्या करे अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है और मरीज ज्यादा. और वहां मिलने वाली दवा की बात की जाये तो पेट दर्द, आंख, कान या अन्य कोई परेशानी हो उसका समाधान बस एक दवा. और जब डॉक्टरों से पूछा जाता है तो वो कहते है कि यहाँ पर यह दवा ही नहीं है या ख़त्म हो गया है बाहर से ले लीजिये. मरीज को दवा तो लेना ही है सो बहार से ना चाहते हुए भी महंगे दवा को लेना पड़ता है.

अब आते है कर्मनाशा में
कैमूर जिले में वसा कर्मनाशा की हालत और भी दयनीय नजर आती है 20 गांवों का बसेरा कर्मनाशा बाजार में स्वास्थ्य के लिए कोई सरकारी सुविधा नहीं है. यानि यहाँ पर कोई सरकारी अस्पताल नहीं है. अगर आप बीमार पड़ जाये तो सरकारी अस्पताल के लिए 13KM दूर दुर्गावती ब्लाक पर जाना पड़ेगा वो भी आपको कोई छोटी-मोती बीमारी हो तो लेकिन कोई बड़ी बीमारी या इमरजेंसी होने पर कैमूर का कोई भी सरकारी अस्पताल आपका इलाज नहीं कर सकता क्योंकि उनके पास न तो अच्छे डॉक्टर है और न ही अच्छी सुविधा. तब उस समय आपको UP में रुख करना पड़ता है और BHU जैसी विश्वसनीय संस्था (अस्पताल) में जाकर अपना इलाज करना पड़ता है.
कुछ कर्मनाशा निवासियों की प्रतिक्रिया
आज से करीब 19-20 साल पहले कर्मनाशा में एक छोटा सा सरकारी अस्पताल हुआ करता था और उसमे एक डॉक्टर बाबू बैठा करते थे. अस्पताल होने की वजह से छोटी-मोटी बिमारियों का इलाज आसानी से हो जाया करता था लेकिन कुछ दबंगों की वजह से वह बंद हो गया. अगर जाँच हो तो सरकारी रेकड़ में यह अस्पताल शायद आज भी जिन्दा मिलेगा लेकिन उसके लिए कौन इतना दोस्हज करे. यह बात कर्मनाशा के ही एक व्यक्ति का कहना था. मैंने उनका नाम इस लिए नहीं लिखा क्योंकि उन्होंने मना किया था.

कर्मनाशा के गणेश चौबे जी कहते है कि करीब 20 साल पहले एक सरकारी वैद्य कर्मनाशा में रहा करते थे सरकारी जमीन में व्यवस्था न होने के कारण वह भाड़े के माकन में ही लोगों का इलाज किया करते थे. मैं चाहता हूँ कि कर्मनाशा में फिर से कोई अच्छा सरकारी अस्पताल बने जिससे यहाँ के लोगों को ही नहीं बल्कि इस पुरे क्षेत्र को इलाज कराने के लिए बाहर न जाना पड़े.
नोट – हमलोग क्यों ना अपने सांसद और विधायक से मांग करे कि कैमूर में भी एक अच्छा और सभी सुविधाओं से परिपूर्ण सरकारी हॉस्पिटल बने जिससे की हमलोगों को इलाज कराने के लिए किसी अन्य राज्य में ना जाना पड़े.
हम, हमारा परिवार, हमारा समाज स्वस्थ और खुशहाल रहेगा तभी हम एक अच्छे देश की कल्पना कर सकते है.

( फ़ोटो अनुमंडल मोहनिया और जिला अस्पताल भभुआ का है)



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