कर्मनाशा की हार पार्ट – 8 | द सहाफत न्यूज़ |

खुले मन की बात


कर्मनाशा वासियों को सन्देश  


बदलाव एक दिन में नहीं होता उसे एक लम्बे वक्त की आवश्यकता होती है लेकिन जब एक लम्बे वक्त के बाद भी बदलाव न दिखे तो समझ जाइये कि वहां पर विकास न होने का कारण वहीँ के लोग हैं.
यहाँ के लोगों को जब भी मैं देखता हूँ तो मुझे पाश की एक कविता याद आती है
“सबसे खतरनाक”
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
जी हाँ यहाँ के लोगों के सपने मर चुके है ये अब कुछ भी देखना नहीं चाहते, बोलना नहीं चाहते और तो और कुछ लिखना नहीं चाहते. इनके अन्दर आलाश्य आ गया है इन्हें समाज और समाज के लोगों से अब कोई लेना-देना नहीं रह गया है. कहाँ जाता है कि जब समाज के लोग हद से ज्यादा नेताओं की चाटुकारिता करने लग जाते है तो समाज की दुर्दशा वहीँ से ख़राब होना शुरू हो जाता है. और विकास का स्तर गिर जाता है.
अगर समाज को बदलना है, विकास करना है और अपने सामने होने वाले अन्याय से लड़ना है तो खुद में परिवर्तन करना होना और पहला कदम स्वयं रखना होगा. भगत सिंह कहते है कि “बुराई इसलिए नहीं बढ़ रही है कि बुरे लोग बढ़ गए है बल्कि बुराई इसलिए बढ़ रही है क्योंकि बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गये है।”
फ़ोटो आभार - राजेश कुमार (सहारा वाले), अभिषेक तिवारी, श्रवन कश्यप (कर्मनाशा)

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