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Showing posts from July, 2019

कर्मनाशा की हार पार्ट - 11 | बिहार | कैमूर | कर्मनाशा | मलेरिया | भ्रष्ट सरकार | भ्रष्टाचार |

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मच्छर के आतंक से लोगों का जीना हुआ हराम: सुविधाए नदारत दुर्गावती प्रखंड के खजुरा पंचायत में डेंगू का एक छोटा-सा मच्छर जानलेवा और दहशत का पर्याय बन गया है| यहाँ के लोगों का कहना है कि मच्छर की वजह से वे रातभर सो नहीं पाते तो वही दिन के समय भी उनका दहशत बना रहता है| आपको पता होगा कि डेंगू के मच्छर गन्दगी के कारण होते है और खजुरा पंचायत की बात करे तो यहाँ सफाई का नामों निशान नहीं दिखता है| भारत के प्रधानमंत्री जिस प्रकार से स्वच्छता को लेकर दुनिया  भर में डंका बजा रहे है तो वही यहाँ के मच्छर लोगों की रात में बैंड बजा रहे है| फिर भी मुखिया जी को यह नहीं लगता की पंचायत के सभी गावों में दवा का छिरकाव करा दिया जाये जिससे की यहाँ के लोगों को डेंगू जैसी प्राणघातक बीमारी से बचाया जा सके | आपको बता दें कि भारत में लगभग हर साल 5 करोड़ व्यक्ति इस बीमारी से संक्रमित होते है और इससे प्रतिवर्ष 12000 मौतें होती है| जिसमें से सबसे अधिक बच्चे होते है| theworldundermedia पंचायत में हो रहे अव्यवस्था के लिए कही न कही पंचायत के मुखिया की बड़ी भूमिका रहती है क्योंकि पंचायत में जो भी सुविधाए

कर्मनाशा की हार पार्ट – 10 | द सहाफत न्यूज़ |

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विधायक  के नाक के नीचे चल रहा है काला बाजारी का धंधा: बाजार मौन theworldundermedia theworldundermedia भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाल किले से भले ही कहते हो कि “मैं न खाऊंगा न खाने दूंगा” लेकिन लगता है कि उनका ये प्रण उन्हीं के पार्टी के नेताओं को अब रास नहीं आ रही है जी हाँ रामगढ़ क्षेत्र के विधायक को देखकर कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है क्योंकि दुर्गावती प्रखंड के कर्मनाशा बाजार में पक्की सड़क व उसके दोनों तरफ नाली निकालने के लिए मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत लगभग 60 से 65 लाख रुपये आवंटित किये गए थे. लेकिन लगता है कि ये भी कार्य बाकी कार्यों की तरह फेलियर ही नजर आता है. आपको बता दें कि अभी कुछ ही दिनों पहले G.T रोड से रेलवे स्टेशन पर जाने वाली सड़क के दोनों तरफ पक्की नाली बनकर तैयार हुआ है लेकिन उसके 2 या 3 हफ्तों में ही नाली से पानी का रिसाव होना शुरू हो गया. और बरसात के पहले झोके में ही उसकी मजबूती लोगों के सामने आ गई. और अगर बात की जाए कर्मनाशा बाजार में बनकर तैयार हुई पक्की सड़क की तो बस इतना ही कह सकते है कि उसे लोगों को दिखने के लिए सीमेंट गिट्टी से

कर्मनाशा की हार पार्ट – 9 | द सहाफत न्यूज़ |

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# सीमेंट  गिट्टी वाली पक्की सड़क टूटी तो जिम्मेदार कौन  गुप्ता कॉलोनी की टूटी सड़क  # सीमेंट  गिट्टी वाली पक्की सड़क अगर कुछ ही महीनों में टूट जाये तो सवाल तो उठेंगे ही – आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? 1. ठेकेदार...... ? 2. पंचायत के सदस्य (मुखियाँ से लेकर वार्ड मेंबर तक) ........ ? 3. आला अधिकारी...... ? जी हाँ मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बना सड़क 10 ही महीनों में ख़राब हो गया. आपको बता दें कि G.T. रोड से रेलवे उसपार की तरफ जाने वाली सड़क (गुप्ता कॉलोनी) अभी कुछ ही दिनों पहले बना था. लेकिन अब उसमे जगह-जगह पर दरारे आ गई है और कई जगह पर बरसात की वजह से सड़क धस गई है. देखा जाये तो इस मार्ग से कई गाँव जुड़े हुए है. जब से इस मार्ग को पक्कीकारण किया गया है लोगों का आना जाना अधिक हो गया है. इस सड़क से स्कूल जाने वाले बच्चों के साथ-साथ स्कूली वाहन भी चलते है. सड़क में दरार पड़ने व बरसात की वजह से जगह-जगह पर टूटने से पैदल और वाहनों से चलने वाले लोगों और स्कूली बच्चे हर दिन अपनी जान जोख़िम में डालकर जा रहे है. theworldundermedia आप खुद सोचिए कि अगर कोई सड़क कुछ महीनों पह

कर्मनाशा की हार पार्ट – 8 | द सहाफत न्यूज़ |

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खुले  मन की बात कर्मनाशा वासियों को सन्देश   बदलाव एक दिन में नहीं होता उसे एक लम्बे वक्त की आवश्यकता होती है लेकिन जब एक लम्बे वक्त के बाद भी बदलाव न दिखे तो समझ जाइये कि वहां पर विकास न होने का कारण वहीँ के लोग हैं. यहाँ के लोगों को जब भी मैं देखता हूँ तो मुझे पाश की एक कविता याद आती है “सबसे खतरनाक” सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना घर से निकलना काम पर और काम से लौटकर घर आना सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना जी हाँ यहाँ के लोगों के सपने मर चुके है ये अब कुछ भी देखना नहीं चाहते, बोलना नहीं चाहते और तो और कुछ लिखना नहीं चाहते. इनके अन्दर आलाश्य आ गया है इन्हें समाज और समाज के लोगों से अब कोई लेना-देना नहीं रह गया है. कहाँ जाता है कि जब समाज के लोग हद से ज्यादा नेताओं की चाटुकारिता करने लग जाते है तो समाज की दुर्दशा वहीँ से ख़राब होना शुरू हो जाता है. और विकास का स्तर गिर जाता है. theworldundermedia अगर समाज को बदलना है, विकास करना है और अपने सामने होने वाले अन्याय से लड़ना है तो खुद में परिवर्तन करन

कर्मनाशा की हार पार्ट – 7 | द सहाफत न्यूज़ |

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रेलवे   उसपार के लोगों के जान की कीमत कौड़ियों के भाव रेलवे   पार करने के लिए जान जोख़िम में डालते लोग                                                                  कर्मनाशा रेलवे स्टेशन  मैं एक इंसान हूँ। वो हर बात मुझे प्रभावित करती है जो इंसानियत को प्रभावित करे।” ये वाक्य भगत सिंह का है लेकिन इस बात को मैं दुबारा दोहराना चाहता हूँ क्योंकि जब लोगों के जान की कीमत कौड़ियों के भाव भी ना हो तो यहाँ के लोगों और सत्ता में बैठे प्रतिनिधियों से सवाल तो बनता है. जी हाँ कर्मनाशा बाज़ार के उत्तर में बसे करीब 10 से 15 गांवों के लोग आज भी रेलवे लाइन पार करने की समस्या से जूझ रहे है. आपको बता दे कि यहाँ से रोजाना 40-50 मेल व एक्सप्रेस ट्रेनें गुजरती है। इसके अलावा करीब 60 से अधिक माल ट्रेन व 5 से 10 पसैंजर ट्रेनें भी चलती है। जिससे की यहाँ पर हर पांच से दस मिनट बाद ट्रेनों का कारवां गुजरता रहता है. theworldundermedia लरमा, जमुरनी, छाता, करारी, दैथा, मोडडा, धनाइतपुर, रामपुर, लक्ष्मणपुर, मौजी, चिरईगांव व् अन्य गांवों के लोगों का बाज़ार आने से लेकर गाड़ी पकड़ने तक का रास्ता एक

कर्मनाशा की हार पार्ट - 6 | द सहाफत न्यूज़ |

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कर्मनाशा रेलवे स्टेशन यात्रियों को करता है परेशान                               कर्मनाशा रेलवे स्टेशन                                                          कर्मनाशा रेलवे स्टेशन पर बंद शौचालय की तस्वीर  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही भारत को 99.5% शौच मुक्त कर देने का दावा करे लेकिन उन्हीं के महकमे में स्वच्छ भारत मिशन की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है. जी हाँ कर्मनाशा रेलवे स्टेशन पर स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय तो बन गया लेकिन यात्रियों के सुविधा के लिए आज तक खोला नहीं गया. बल्कि रेलवे प्रसाशन शौचालय के दोनों दरवाजों (पुरुष/स्त्री शौचालय) पर बड़ा-बड़ा ताला लगाया हुआ है जिससे की आने वाले यात्री उसका उपयोग न कर सके. जिसके चलते रेलवे स्टेशन पर पहुँचने वाले यात्रियों को अव्यवस्थाओं एवं सुविधाओं के आभाव में काफी परेशानी उठानी पड़ती है. आपको हमने पहले ही “#कर्मनाशा की हार” पार्ट -1 में बताया था कि कर्मनाशा बाज़ार में एक भी सार्वजानिक शौचालय नहीं है. जिसके चलते कर्मनाशा बाज़ार में आये हुए लोगों बल्कि रेलवे स्टेशन पर आ रहे यात्रियों को भी रेलवे ट्रैकों पर जाकर खुले में

कर्मनाशा की हार पार्ट – 5 | द सहाफत न्यूज़ |

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कर्मनाशा का 20 साल पहले ही सरकारी अस्पताल चोरी : ग्रामवासी अंजान  image source: google image भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाल किले से स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की स्कीमों की घोषणा करते है तो वहीँ बिहार के सुशासन बाबू सरकारी अस्पतालों को बिहार की उपलब्धि बताने में भी संकोच नहीं करते. लेकिन जब मुजफ्फरपुर जैसी घटना सामने आती है तो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाई गई स्कीमों की पोल खुलती नजर आती है. जबकि यह वाक्या मुजफ्फरपुर जैसे बड़े जिले में हुआ जहाँ पर बड़े-बड़े सरकारी हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज उपलब्ध है. फिर भी वहां पर चमकी बुखार जैसी बीमारी से 200 से अधिक बच्चों की मौत को गई और न जाने कितने बच्चे इस बीमारी से जूझ रहे है. तो सोचिये अगर यह स्थिति उन जिलों में होती जहाँ नाम का सरकारी हॉस्पिटल है और काम चवन्नी का भी नहीं अथार्थ अस्पताल में न ही शुद्ध से डॉक्टर है और न ही शुद्ध से दवा उपलब्ध हो पा रही है. डॉक्टरों की कमी की वजह से हालत तो यह है कि एक डॉक्टर 10-10 बीमारियों का इलाज कर रहा है. theworldundermedia आपलोगों को लग रहा होगा कि ये रोज-रोज “#कर्मनाशा की हार” म

कर्मनाशा की हार पार्ट- 4 | द सहाफत न्यूज़ |

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भानपुर   कुराडी सड़क ख़राब होने से लोगों का हाल बेहाल नेशनल हाइवे से   भानपुर   कुराडी को  जोड़ने वाली  सड़क बिहार के सुसाशन बाबू नितीश कुमार जी बिहार की छबि को लेकर भले ही बड़े-बड़े भाषण दे. हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ने का वादा करें । लेकिन प्रशासनिक लापरवाही और राजनेताओं की इच्छाशक्ति के अभाव के चलते कर्मनाशा बाज़ार से भानपुर होते हुए कुराडी तक जानेवाली सड़क अपनी बदहाली पर रो रही है। आपको बता दें कि इस सड़क पर प्रतिदिन सैकड़ों लोगों का आना-जाना लगा रहता है और तो और इन गांवों के बच्चें भी इसी सड़क से होते हुए अपने स्कूल को जाते है. फिर भी इस सड़क के बारे में सोचने वाला कोई नहीं है. सड़क में जगह-जगह पर गड्ढे व उबड़-खाबड़ सड़क इसकी जर्जरता को खुद बयां कर रही है। सड़क ख़राब होने के कारण दोपहिया व छोटे वाहनों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जिसके चलते यहाँ पर प्रतिदिन कोई न कोई हादसा होता रहता है अब तो हालत यह हो गई है कि अभिभावक भी अपने बच्चों को इस रास्तें से स्कूल भेजने से डरते है. सड़क के बारे में कुछ ग्रामीणों की प्रतिक्रिया राहुल यादव – सड़क ख़राब होने की वजह से यहाँ आयेदिन

कर्मनाशा की हार पार्ट- 3 | द सहाफत न्यूज़ |

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हम   लड़ेंगे अपने बेटियों और उसके शिक्षा के लिए स्कूल जाती छात्राएं  ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी 50 से 60 फीसदी लड़के लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते है. इसकी मुख्य वजह आर्थिक तंगी नहीं बल्कि कॉलेजों का दूर होना है. जी हाँ कर्मनाशा और उससे जुड़े करीब 30 से 40 गाँव येसे है जहाँ के बच्चे 10वी. और 12वी. तो किसी तरफ पास कर लेते है लेकिन जब बात उच्च शिक्षा की आती है तो उनके और उनके माता-पिता के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा हो जाता है. क्योंकि कर्मनाशा UP बिहार के बॉडर पर बसा है. और बिहार के कैमूर जिले की बात करें तो नजदीक में 2 या 3 ही सरकारी कॉलेज नजर में आते है वो भी कर्मनाशा से 35KM (भभुआ) और 70KM (सासाराम) की दुरी पर स्थित है. अगर बात करे इन कॉलेजों की तो इनमे आर्ट और साइंस के आलावा कोई अन्य सब्जेक्ट नहीं मिलता. जिसकी वजह से बच्चों को काफी परेशानी होती है. तो बच्चे क्या करे? मज़बूरी है और इसी मज़बूरी की वजह से बिहार के बच्चे UP का रुख करते है. कर्मनाशा से UP का चंदौली जिला सटा हुआ है. यहाँ का हालत भी कर्मनाशा क्षेत्र के लड़के और लड़कियों के लिए बिहार से कुछ अलग नजर नहीं

कर्मनाशा की हार पार्ट -1 | द सहाफत न्यूज़ |

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कर्मनाशा कि हार अगर आपको पिछले 5 सालों में केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई योजना “स्वच्छ भारत मिशन” की उपलब्धि को करीब से देखना है तो आपको एक बार बिहार राज्य के कैमूर जिले में स्थित कर्मनाशा बाज़ार में जरुर आना चाहिए. मैं ऐसा इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि यहाँ हर घर में एक नेता मिलेंगे जो बड़ी-बड़ी बाते तो करेंगे लेकिन जब जमीन पर आम लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से काम कराने की बात होगी तो वे उनकी चाटुकारिता में लग जायेंगे और तो और कुत्ता जिस प्रकार से रोटी के लिए अपने मालिक के आगे पीछे धूमता है ये लोग उसी प्रकार से अपनी वफ़ादारी दिखाते है. अब बात करेंगे “स्वच्छ भारत मिशन” की उपलब्धि के बारे में तो जैसा की आपको पता होगा की स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत सिर्फ एक दो नहीं बल्कि 6 योजनाये आती है जिसमें घर-घर में शौचालय, जनसँख्या के हिसाब से सार्वजानिक शौचालय, मूत्राशय, स्नानघर, पीने के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था, नाली की व्यवस्था, कूड़ेदान की व्यवस्था और एक कर्मचारी जो समय-समय पर स्वच्छता के बारे में सभी को अवगत कराये एवं वहा पर हो रहे प्रावधानों को जिला में अवगत कराये. theworldundermed

कर्मनाशा की हार पार्ट- 2 | द सहाफत न्यूज़ |

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आम जन का हक़ छीन कर अपना घर भर रहे है :वार्ड सदस्य   सरकारी चापाकल का निजीकरण  theworldundermedia एक समय था जब हमलोग बचपन में एक खेल खेला करते थे. “घघ्घो रानी कितना पानी? इतना पानी, नहीं इतना” | उस समय बिहार में पानी (वर्षा) भी खूब हुआ करता था. या यूं कहे की बरसात पर ही किसान आश्रित थे . आज भी होता है लेकिन इस बार बिहार में जिस प्रकार से सुखा का प्रकोप देखने को मिला है वो पहले कभी नहीं हुआ. पहले गाँव में कुओं और तालाबों की कोई कमी नहीं हुआ करती थी तो वहीँ सरकारी चापाकल भी जगह-जगह पर लगे हुए थे. लेकिन वर्तमान समय की बात करें तो कुओं और तालाबों को पाट कर उसपर घर और अन्य कम्पनियाँ खोली जा रही है तो वहीँ सरकारी चापाकल का अपने ओहदे और रुतबे से निजीकरण किया जा रहा है. कहते है कि जब रहनुमा ही आम आदमी के निवाले पर डाका डालने लगे तो उस समाज का कभी भला नहीं हो सकता. ठीक इसी तरह की कहावत को चरितार्थ कर रहा है कैमूर जिले का खजूर पंचायत में वार्ड नंबर 7. जहाँ पूर्व वार्ड सदस्य आम जन की प्यास बुझाने के लिए आवंटित चापाकल में निजी मोटर लगाकर और उसका अपने घर में कनेक्सन कर सरकारी चापा